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गंगा महात्म्य: मां गंगा के भक्त पद्माकर जी की भक्ति गाथा

जै गंगा मैया।
 
श्री गंगा भागीरथी महात्म्य ग्रंथ में संकलित, श्री कैलाश पंकज श्रीवास्तव जी द्वारा वर्णित गंगा भक्त महाकवि पद्माकर की भक्ति गाथा।
 
गंगा लहरी के सुप्रसिद्ध रचियता कविवर पद्माकर जी गंगा के अनेक भक्तों में सुप्रसिद्ध भक्त थे। इनका जन्म संवत् 1810 में बांदा में हुआ था। पद्माकर जी तैलंग ब्राह्मण थे।
 
राजा ने इनकी महान रचनाओं के कारण प्रसन्न होकर बहुत सारा धन और संपदा प्रदान कर इन्हें सम्मानित किया।
 
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उनके जीवन का एक अद्भुत संघर्ष

उत्तरकाल में दुर्भाग्यवश पद्माकर जी गंभीर कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गये। जब वे कानपुर में गंगा के निकट अपने जीवन को समर्पित करने की इच्छा से गंगा तट पर पहुंचे, तब महाकवि पद्माकर अपने पाप पुंज को संबोधित और गंगा मैया का ध्यान कर इस वंदना का पाठ करने लगे।
 
जैसे तैं न मोको कहूं ने कहूं डराता हुतो।
ऐसो अब तोंको हों हूं ने कहूं न डरि हौं।
 
कहे पद्माकर प्रचंड जो परैगो तो
उमंडि करि तोसों भुजदंड ठौंकि लरिहौं।
 
एरे दगादार मेरे पातक अपार तोहि
गंगा की कछार में पछार छार करिहौं।।

गंगा भक्ति की शक्ति का प्रमाण

गंगा की हृदय पूर्वक सच्ची भक्ति के कारण गंगा मैया की असीम कृपा से धीरे-धीरे पद्माकर जी का कुष्ठ रोग समाप्त होने लगा और एक समय ऐसा आया कि पद्माकर जी का कुष्ठ रोग पूर्णतः समाप्त हो गया और वे एक दम स्वस्थ हो गये। फिर उन्होंने यहीं गंगा तट पर कानपुर में ही अपने लिए सुंदर भवन बनाया और वहीं रहने लगे।

मां गंगा के प्रति श्रद्धा से जो प्राणी स्नान ध्यान पूजा अर्चना करता है, उसके बड़े-बड़े गंभीर रोग तो समाप्त हो ही जाते हैं साथ में सुख और समृद्धि भी आने लगती है।
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गंगा महात्म्या एक अद्वितीय रूप से हमें दिखाती है कि भक्ति और आस्था की शक्ति किसी भी कठिनाई को पार करने में सहायक हो सकती है। हम गंगा मैया की कृपा से सदैव प्रेरित और सुरक्षित महसूस करते हैं।

इस ब्लॉग के माध्यम से हमने जाना कि कैसे मां गंगा की भक्ति और स्नान से हमारा जीवन परिवर्तित हो सकता है। गंगा महात्म्या हमें एक अद्वितीय संदेश देती है – जो ध्यान, आस्था और समर्पण से मिलता है।

आशा है कि यह ब्लॉग आपको प्रेरित करेगा और आपकी आस्था को मजबूत करेगा। जै मां गंगा !

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