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गंगा और गायत्री के पवित्र अनुष्ठान का महात्म्य

गंगा नदी और गायत्री मंत्र हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। इनके मिलन से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, वह साधकों को अपार लाभ प्रदान करती है। इस ब्लॉग में, हम श्री गंगा भागीरथी महात्म्य ग्रंथ में वर्णित गंगा और गायत्री के महत्व पर प्रकाश डालेंगे।

गंगा और गायत्री का महात्म्य

गंगा नदी हिंदू धर्म में मां के समान पूजनीय है। इसे मोक्ष दायिनी और पाप विनाशिनी कहा जाता है। गायत्री मंत्र, वेदों का प्रमुख मंत्र है, जो मानसिक शुद्धता और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है। जब इन दोनों का संगम होता है, तो साधक को अद्वितीय लाभ प्राप्त होते हैं।

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गंगा तट पर गायत्री अनुष्ठान

गंगा के पावन तट पर गायत्री मंत्र का अनुष्ठान अत्यंत फलदायी होता है। पवित्र मन से संपन्न किया गया यह अनुष्ठान साधक के विकारों को नष्ट कर, सुविचार प्रदान करता है और नव ज्योति का सृजन करता है। ऐसे साधक जिनके पास गंगा तट पर निवास का स्थान और गायत्री मंत्र का ज्ञान है, वे इहलोक और परलोक दोनों स्थानों पर सुखमय जीवन बिताते हैं।

गायत्री महायज्ञ का महत्व

गायत्री महायज्ञ, गायत्री मंत्र से आहुति देने का एक विशेष यज्ञ है। इसमें चौबीस लाख आहुति होती है और 61 या 71 विद्वानों की उपस्थिति में यह 9 या 11 दिनों तक चलता है। इस महायज्ञ में 1, 5, 9, या 24 कुंड होते हैं, जो इसकी विशेषता को बढ़ाते हैं।

गायत्री पुरश्चरण की प्रक्रिया

गायत्री पुरश्चरण में 24 दिनों तक गायत्री मंत्र का जप होता है। इसमें प्रत्येक विद्वान को प्रतिदिन 3000 गायत्री जप करने चाहिए। 33 ब्राह्मणों द्वारा प्रतिदिन निन्यानबे हजार (99,000) जप होते हैं। गायत्री पुरश्चरण की समाप्ति पर जप का दशांश हवन करना चाहिए। चौबीस लाख जप का दशांश हवन प्रायः अढ़ाई लाख होता है।

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प्रमुख स्थान और आयोजन

प्रयागराज, हरिद्वार, ऋषिकेश, उत्तरकाशी और गंगोत्री धाम जैसे पवित्र स्थलों पर समय-समय पर हजारों गायत्री पुरश्चरण आयोजित किए जाते हैं। इन स्थानों पर गंगा के पावन तटों पर यह अनुष्ठान साधकों को अपार लाभ प्रदान करता है।

गंगा और गायत्री के संगम से उत्पन्न आध्यात्मिक ऊर्जा साधकों के जीवन में सुख, शांति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। गंगा तट पर गायत्री अनुष्ठान करने से व्यक्ति के विकार नष्ट होते हैं और उसे सुविचार प्राप्त होते हैं। यह अनुष्ठान साधकों के जीवन को सार्थक बनाता है और उन्हें इहलोक तथा परलोक दोनों में सुखमय जीवन प्रदान करता है।

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