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गंगा अवतरण कथा : भगीरथ की तपस्या से प्राप्त आशीर्वाद

जय गंगा मैया !

श्री गंगा भागीरथी महात्म्य ग्रंथ में संकलित श्री गंगा महात्म्य नारद महापुराण  से निकली गंगा अवतरण कथा व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति का परिचय कराती है।

चक्रवर्ती सम्राट महाराजा सगर

सूर्यवंशी श्रीराम के पूर्वजों में एक राजा थे राजा बाहू उनकी दो पत्नियां थीं, उनमें से एक ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम सगर रखा गया। सगर की भी दो पत्नियां थीं, केशनी और सुमति। केशनी का एक पुत्र हुआ जिसका नाम असमंजस रखा गया, दूसरी रानी सुमति के साठ हजार पुत्र हुए।असमंजस का पुत्र अंशुमान था। महाराजा सगर के सभी पुत्र दुष्ट थे, उनसे दुखी होकर राजा सगर ने असमंजस को राज्य से निकाल दिया। उनका पौत्र अंशुमान दयालु, धार्मिक और दूसरों का सम्मान करने वाला था। राजा सगर ने अंशुमान को ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया।

ऐसे भस्म हो गए राजा सगर के 60 हजार पुत्र

इस बीच राजा सगर ने अपने राज्य में अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया, जिसके तहत उन्होंने अपने यज्ञ का घोड़ा छोड़ा था, जिसे देवताओं के राजा इंद्र ने चुराकर पाताल में कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया। सगर के 60 हजार पुत्र उसे खोजने के लिए निकलते हैं।लाख प्रयास के बाद भी उन्हें यज्ञ का घोड़ा नहीं मिला।

पृथ्वी पर घोड़ा न मिलने की दशा में उन लोगों ने एक जगह से पृथ्वी को खोदना शुरू किया और पाताल लोक पहुंच गए। घोड़े की खोज में वे सभी कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए, जहां घोड़ा बंधा था। घोड़े को मुनि के आश्रम में बंधा देखकर राजा सगर के 60 हजार पुत्र गुस्से और घमंड में आकर कपिल मुनि पर प्रहार के लिए दौड़ पड़े। तभी कपिल मुनि ने अपनी आंखें खोलीं और उनके तेज से राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्र वहीं जलकर भस्म हो गए।

अंशुमान को इस घटना की जानकारी गरुड से हुई तो वे मुनि के आश्रम गए और उनको सहृदयता से प्रभावित किया। तब मुनि ने अंशुमान को घोड़ा ले जाने की अनुमति दी और 60 हजार भाइयों के मोक्ष के लिए गंगा जल से उनकी राख को स्पर्श कराने का सुझाव दिया।

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गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगीरथ की तपस्या

पहले राजा सगर, फिर अंशुमान, राजा अंशुमान के पुत्र दिलीप इन सभी को गंगा को प्रसन्न करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। तब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि गंगा के वेग को केवल भगवान शिव ही संभाल सकते हैं, तुम्हें उनको प्रसन्न करना होगा।

तब भगीरथ ने भगवान शिव को कठोर तपस्या से प्रसन्न कर अपनी इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और फिर उनको पृथ्वी पर छोड़ा। इस प्रकार गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ और महाराजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। भगीरथ की तपस्या से अवतरित होने के कारण गंगा को ‘भागीरथी’ भी कहा जाता है।

भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति

इस महात्म्यपूर्ण गंगा अवतरण कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि भक्ति, तपस्या, और दृढ़ संकल्प से मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। भगीरथ की उदारता और साहस ने उसे अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने में सफल बनाया। इसी भावना के साथ, हम सभी को गंगा मैया की आराधना में रूचि बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए ताकि हमें भी भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हो।

जय गंगा मैया!

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